तो आज शहर मे सब खैरियत नहीं होती

~¤Akash¤~

Prime VIP
हवेलिओं मे मेरी तरबियत नहीं होती
तो आज सर पे टपकने को छत नहीं होती

हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल
उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती

चराग घर का हो महफिल का हो के मंदिर का
हवा के पास कोई रहमियत नहीं होती

हमें जो खुद मे सिमटने का फन नहीं आता
तो आज ऐसी तेरी सल्तनत नहीं होती

वसीम शहर मे सच्चाइयों के लब होते
तो आज शहर मे सब खैरियत नहीं होती
 
Top