तुम सो रहे हो नोजवानो

तुम सो रहे हो नोजवानो
देश बिकता है,
तुम्हारी संस्कृति का है खुला
परिवेश बिकता है।
सिंहासनों के लोभियों के हाथ में पड़कर ,
तुम्हारे देश के इतिहास का
अवशेष बिकता है ।
पिशाचों से बचालो देश को,
अभिमान ये होगा,
तुम्हारा राष्ट्र को अर्पित किया
सम्मान ये होगा।
ये आतंकियों को यूँ यदि
सर पे चढायेंगे,
हमलावरों को राष्ट्र के बेटे बताएँगे,
जगह जिनकी है केवल जेल में,
उन्ही दरिंदों को,
लहू जो स्वार्थ में,इस देश का
इनको पिलायेंगे।
सपूतों के बहाए रक्त का
अपमान ये होगा,
शहीदों का हुआ सब व्यर्थ ही
बलिदान ये होगा।
पिशाचों से बचालो
ये आतंकी इरादों को
नजरअंदाज करते है
जिहादी युद्ध को कुछ
सिरफिरों का खेल कहते है
वतन, आतंकियों की चाह के
माकूल करके ये
महज सत्ता की खातिर
देश को गुमराह करतेहैं।
यही होता रहा तो
देश अब शमसान ये होगा
चमकते सूर्य से इस देश का
अवसान ये होगा।
चलो इस देश का नवजागरण
तुमको बुलाता है।
समर का तुमको आमंत्रण
वह तुमको बुलाता है।
चलो आलोक लेकर के
अँधेरा काट दे इसका
है तुमपे देश का जो ऋण
वह तुमको बुलाता है।
तुम्हारे हर कदम की ताल से
जयगान ये होगा
 
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