तुम सोच रहे हो

Saini Sa'aB

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तुम सोच रहे हो
तुम सोच रहे हो बस, बादल की उड़ानों तक,
मेरी तो निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक।
टूटे हुए ख्व़ाबों की इक लंबी कहानी है,
शीशे की हवेली से, पत्थर के मकानों तक।
दिल आम नहीं करता, एहसास की खुशबू को,
बेकार ही लाए हम, चाहत को ज़ुबानों तक।
लोबान का सौंदापन, चंदन की महक में हैं,
मंदिर का तरन्नुम है, मस्जिद की अज़ानों तक।
इक ऐसी अदालत है जो रूह परखती है,
महदूद नहीं रहती वो सिर्फ़ बयानों तक।
उम्मीद के साए हैं, हम आस बिछाए हैं,
इस दिल के दरीचे से, आँखों की मचानों तक।
हर वक्त, फ़िज़ाओं में महसूस करोगे तुम,
ये प्यार की खुशबू है, महकेगी ज़मानों तक।
 
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