तीखी हवाएँ आ गईं

Saini Sa'aB

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तीखी हवाएँ आ गईं
हाथ में कोड़ा लिये
तीखी हवाएँ आ गईं

फिर समय के वक्ष पर
छल छद्म के दलदल हुए
हाथ गीता पर रखा
फिर भी न गंगाजल हुए
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आस्थाएँ क्रूरतम अभिशाप से
मुरझा गईं

यातनाओं के महाजन से
हमें भी ऋण मिला
अर्ध सामंती व्यवस्था का
यही है सिलसिला
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लाल बहियों में उलझकर
पीढ़ियाँ घबरा गईं

राजपथ पर जो गए
वे लौटकर आए नहीं
सौम्यता पगडंडियों की
अब उन्हें भाए नहीं
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लाजवंती धारणाएँ
किस कदर पथरा गईं

-- हरिशंकर सक्सेना​
 
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