जो रूह ग़म से भी उकता गई तो क्या होगा

~¤Akash¤~

Prime VIP
नज़र फरेब-ए-क़ज़ा खा गयी तो क्या होगा
हयात मौत से टकरा गयी तो क्या होगा

नई सहर के बहुत लोग मुन्तज़िर हैं मगर
नई सहर भी कजला गई तो क्या होगा

गम-ए-हयात से बेशक है ख़ुदकुशी आसान
मगर जो मौत भी शर्मा गयी तो क्या होगा

शबाब-ए-लाला-ओ-गुल को पुकारने वालो
खिजां सरश्ते-बहार आ गयी तो क्या होगा

खुशी छिनी है तो ग़म का भी एतमाद न कर
जो रूह ग़म से भी उकता गई तो क्या होगा
 
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