जो भी सफ़र में रूक गये हैं इस पड़ाव पर

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
जो भी सफ़र में रूक गये हैं इस पड़ाव पर
वो लोग आग तापते, बैठे अलाव पर

जो तैरना न जानते थे पार जा लगे
दरिया में डूब वो गये बैठे जो नाव पर

तन्हाइयाँ तमाम रात जागती रहीं
जलता रहा चराग़ हवा के दबाव पर

जो रहनुमा थे, राह पर आगे चले गये
अब लौट कर वो आयेंगे अगले चुनाव पर

दिखला के मीठे ख्वाब ख़ुद वो ख्वाब हो गये
छिड़का किये हैं हम नमक अपने ही घाव पर

लेकर तुम्हारा नाम किया मैंने है निसार
नन्हा-सा एक दीप नदी के बहाव पर​
 
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