जाडे में पहाड

Saini Sa'aB

K00l$@!n!

फिर हिमालय की अटारी पर
उतर आये हैं परेवा मेघ
हंस-जैसे श्वेत
भींगे पंखवाले।
दूर पर्वत पार से मुझको
है बुलाता-सा पहाड़ी राग
गरम रखने के लिए बाकी
रह गयी बस कांगड़ी की आग
ओढ़कर बैठे सभी ऊँचे शिखर
बहुत महँगी धूप के ऊनी दुशाले। मौत का आतंक फैलाती हवा
दे गयी दस्तक किवाड़ों पर
वे जिन्हें था प्यार झरनों से
अब नहीं दिखते पहाड़ों पर
रात कैसी सरद बीती है
कह रहे किस्से सभी सूने शिवाले।
कभी दावानल, कभी हिमपात
पड़ गया नीला वनों का रंग
दब गये उन लड़कियों के गीत
चिप्पियोंवाली छतों के संग
लोक रंगों में खिले सब फूल
बन गये खूँखार पशुओं के निवाले।​
 
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