जंग मे हार हर बार हो ये ज़रूरी नहीं

Saini Sa'aB

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जंग मे हार हर बार हो ये ज़रूरी नहीं , वक़्त हर वक़्त दुशवार हो ये ज़रूरी नहीं।
गो सिकन्दर के परिवार से है न रिश्ता पर, दिल मे पोरष का किरदार हो ये ज़रूरी नहीं।
फ़िर जलाओ च्ररागे-मुहब्बत को तरतीब से, फ़िर हवायें खतावार हों ये ज़रूरी नहीं ।
कश्ती जर्जर है पर पार जाना भी ज़रूरी है , गम समन्दर का बेदार हो ये ज़रूरी नहीं।
झुकना सीखो बुजुर्गों के आगे दरर्ख्तों सा,हर, दम खुदा को नमस्कार हो ये ज़रूरी नहीं।
इश्क़ क़ुरबानी की खेती है सीखो परवानों से, बस उपज से सरोकार हो ये ज़रूरी नहीं।
शमा के दिल में भी आंसुओं की नदी बहती है,ये पतंगों से इज़हार हो ये ज़रूरी नहीं
मिल गई दीद उनकी मनेगी मेरी ईद,अब , चांद का छ्त पे दीदार हो ये ज़रूरी नहीं।
मज़हबी नस्लें भी विशवास की भूखी हैं दानी , जंग ही उनको स्वीकार हो ये ज़रूरी
 
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