ShivaniPrakash
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छायामान -
मेरा एक और मन
जो मेरे अस्तित्व के साथ खड़ा है
हर पल मेरे वर्तमान को छू कर अपना एहसास दे रहा है
छाया की तरह मेरे जीवन में विलीन हो गया है
अस्तित्व कहा है मेरा
यही प्रश्न बार बार मेरे मन में उमड़ता है
कल्पना में या बहरी दुनिया में
कभी कभी सब एक हो जाता है
सत्य क्या एहसास क्या
कल्पना क्या सच्चाई क्या
किसे ठग रही हूँ मै
निरर्थक आत्मपीडन कर रही हु मै
इसका प्रतिकार तो मुझे ही करना होगा
क्यों की सबकुछ तो पाया नहीं जा सकता
मेरा एक और मन
जो मेरे अस्तित्व के साथ खड़ा है
हर पल मेरे वर्तमान को छू कर अपना एहसास दे रहा है
छाया की तरह मेरे जीवन में विलीन हो गया है
अस्तित्व कहा है मेरा
यही प्रश्न बार बार मेरे मन में उमड़ता है
कल्पना में या बहरी दुनिया में
कभी कभी सब एक हो जाता है
सत्य क्या एहसास क्या
कल्पना क्या सच्चाई क्या
किसे ठग रही हूँ मै
निरर्थक आत्मपीडन कर रही हु मै
इसका प्रतिकार तो मुझे ही करना होगा
क्यों की सबकुछ तो पाया नहीं जा सकता