चिठिया बाँच रहा चंदरमा

Saini Sa'aB

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चिठिया बाँच रहा चंदरमा

चिठिया
बाँच रहा चंदरमा
शरद जुन्हैया की।

जोग लिखि श्रीपत्री घर में
कुशल-क्षेम भारी,
आँगन के बूढ़े पीपल पर
चली आज आरी,
रामजनी कर रहीं चिरौरी
किशन-कन्*हैया की।

चौक-सातिया, बरहा-बाँगन
हो गये असगुनिया,
नहियर-सासुर खुसर-फुसर है
आशंकित मुनियाँ,
बाप-मताई जात कर रहे
देवी मैया की।

गली-मोड़ खुल गयीं कलारीं,
झूमें गलियारे,
ब्*याज-त्*याज में बिके खेत
हल बैठे मन मारे,
कोरट सुरसा बनी
आस अब राम-रमैया की।

पिअराये भुट्टे, इतराये
मकई के दाने .. ..
हाट-बाट में लुटी फसल,
कुछ मण्डी कुछ थाने,
साँसें उखडीं उखड़ गयी हैं
कील पन्हैया की।

शेष सभी कुशलात
देश-परदेश दीन-दुनिया,
लिये आँकड़ों की मशाल
यह बता रहे गुनिया,
जगमग रोज दिवाली
जिनकी गली अथैया की।
 
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