गर जग में

Saini Sa'aB

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गर जग में
मेरा गीत न होता
गूँगी पीर ब्याहता कौन
बिकती न आहों की गठरी
मुस्कानों की मंडी में
वरमाल किसे पहनाती तृष्णा
तृप्ति की पगडंडी में
अपयश किसे सुनाता किस्से
और उनको गीत बनाता कौन
गर जग में
मेरा गीत न होता
गूँगी पीर ब्याहता कौन
चाह तो होती पर
चाहत पर मिटना ही बस धर्म न होता
गुस्ताख़ हवा गुस्ताख़ न होती
प्यार बेशरम प्यार न होता
कौन पवन बन आता सुमुखि
आँचल को सरकाता कौन
गर जग में
मेरा गीत न होता
गूँगी पीर ब्याहता कौन
 
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