Saini Sa'aB
K00l$@!n!
गंवई साँझ
शहर से खटकर
हारी और थकी घर लौटी
पोर पोर सालती दिहाड़ी
फटी पिछौरी में मुँह ढाँपे
पुड़िया बँधे नमक आँटे से
सुरसा बनी गिरस्ती नापे
दम मारती चिलम
चिनगी से
लगी जगाने भरी संझौटी
बलि की पीठ सरीखी साँसें
लगीं तकाज़ों के पग नपने
लगे छिड़कने नमक घाव पर
कंप्यूटरी सदी के सपने
करने लगी रतजगा
खाँसी
धुनी रुई हो गई बुढ़ौती
शहर से खटकर
हारी और थकी घर लौटी
पोर पोर सालती दिहाड़ी
फटी पिछौरी में मुँह ढाँपे
पुड़िया बँधे नमक आँटे से
सुरसा बनी गिरस्ती नापे
दम मारती चिलम
चिनगी से
लगी जगाने भरी संझौटी
बलि की पीठ सरीखी साँसें
लगीं तकाज़ों के पग नपने
लगे छिड़कने नमक घाव पर
कंप्यूटरी सदी के सपने
करने लगी रतजगा
खाँसी
धुनी रुई हो गई बुढ़ौती