गंगा के पुजारी भी नहाने नहीं आते

~¤Akash¤~

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जो बीत गये दिन वो ज़माने नहीं आते
आते हैं नए रोज पुराने नहीं आते

मुद्दत हुई इस पेड़ की हर शाख है सूनी
पंछी भी यहाँ रात बिताने नहीं आते

लकडी के मकाँ मे ना चरागों को रखो तुम
अब आग पडोसी भी बुझाने नहीं आते

जिस दिन से वो फूल चढाने नहीं आते
गंगा के पुजारी भी नहाने नहीं आते
 
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