खत में

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
खत में
तुमने भेज दिया जो
सुधियों का स्तूप है
पीछे,
उजली धवल जुन्हाई
आगे मैली धूप है।

तब,
गीतों में प्यार बुना था
सपने रेशम-रेशम
जगके गरल-घूँट सच्चाई
पिए, बड़े थे दम-खम
साँझ-गगन की मनहर छवियाँ
निगल गए अंधियारे
सारी रात,
जले बुझ-बुझ कर
हाथ मसलते तारे
आँखें मलता भोर उठा जो
वह कितना विद्रुप है।

छड़ी टेक चलती साँसों पर
बोझ उभर का घर कर
पगडंडी आ ठहर गई है
राज पंथ पर थक कर
महाशोर के सूनेपन में
भीड़ भरी एकाकी
अधुनातन के बीच खड़ी है
एक पुरातन झाँकी
समझ नहीं आता है कुछ भी
क्या खंदक
क्या कूप है।

मरने नहीं युयुत्सा देती
चलना तो पड़ता है
हो पहाड़ का माथा चाहे
चढ़ना तो पड़ता है
जितने आँसू झरें
गीत भी
उतना मिठियाता है
चोली से दामन का
प्यारे, जन्मों का नाता है
जो कुछ गाया,
लिखा आजतक
क्या खोया?
क्या पाया?
हमीं जगत के साथ ढले
या जग अपने अनुरूप है।
 
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