कोई मुझ पर मेरा

~¤Akash¤~

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मुझको किस मोड़ पे लाया है मुक़द्दर मेरा
रास्ता रोकते हैं मील के पत्थर मेरा

आँखों-आँखों में गुज़र जाती हैं रातें सारी
अब मुझे ख़्वाब भी देता नहीं बिस्तर मेरा

ताज कोई है न दस्तार-ए-फ़ज़ीलत कोई
बार अब दोश पे लगता है मुझे सर मेरा

मैं परेशान बदलते हुए हालात से था
रख दिया वक़्त ने चेहरा ही बदल कर मेरा

सेहन-ओ-दीवार वही, ताक़-ओ-दर-ओ-बाम वही
अजनबी सा मुझे लगता है मगर घर मेरा

मैं किसी और से उम्मीद-ए-वफ़ा क्या रक्खूँ
ख़ुद ही जब बस नहीं चलता कोई मुझ पर मेरा
 
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