कैसा होगा वो पल

ख्वाब में भी नहीं मैनें पाया, लेकिन दिल महिसूस करनें की चाहत है रखता
कैसा होगा अल्ला-ए वो समाँ, जब यार मेरा पर्तेगा इस तरफ
भले ही उस आस मेरी नें चुन ली हो सुक्खाई
पर मगर न चाहते भी उसके, कभी पिघले मन बरफ
अनुमान लगाना है मुशिकिल कि कुछ उघ्लेगा भी जां नहीं
हर पल गाता जो रहता है मुक्ख तब कोई हरफ
मिला तो होगी नसीबों में अच्छाई जां क्रिश्मा खुदाई का
वो खरीदा भी नहीं जा सकता देके हीरे-मोती-अशरफ

गुरजंट सिंह
 
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