कलमकार हूँ इन्कलाब के गीत सुनाने वाला हूँ

~¤Akash¤~

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कलमकार हूँ इन्कलाब के गीत सुनाने वाला हूँ
कलमकार हूँ कलमकार का धरम निभाने वाला हूँ
अंधकार में समां गये जो तूफानों के बीच जले
मंजिल उनको मिली कभी जो एक कदम भी नहीं चले
सीदे सादे मोन पड़े हैं गुमनामी की राहों में
गुंडे तश्कर तने खड़े हैं राजभवन की राहों में
यहाँ शहीदों की पावन गाथा को अपमान मिला
डाकू ने खादी पहनी तो संसद में सम्मान मिला
राजनीती में लोह पुरुष जैसा सरदार नहीं मिलता
लाल बहादुर जी जैसा कोई किरदार नहीं मिलता
एरे-गैरे सब भारत में संतरी बन कर बैठे हैं
जिनको जेलों में होना था मंत्री बन कर बैठे हैं
मैंने देशद्रोहियों का अभिनन्दन होते देखा हैं
भगत सिंह का रंग बसंती चोला रोते देखा हैं
अब भारत में संसद भी परपंच दिखाई देती हैं
नोटंकी करने वालो का मंच दिखाई देती हैं
आजादी के सपनो का ये कैसा देश बना डाला
चाकू चोरी चीरहरण वाला परिवेश बना डाला
हम सिंघासन चला रहे हैं राम राज के नारों से
मदिरा की बदबू आती हैं संसद की दीवारों से
आज देश में अपहरणओ की हर एक को आजादी हैं
रोज गोडसे की गोली के आगे कोई गाँधी हैं
संसद के सीने पर खूनी दाग दिखाई देता हैं
पूरा भारत जालिया वाला बाग़ दिखाई देता हैं
जबतक बंद तिजोरी में मेहनतकश की आजादी है
तब तक सिंघासन को अपराधी बतलाने वाला हूँ
कलमकार हूँ कलमकार का धरम निभाने वाला हूँ
कलमकार हूँ इन्कलाब के गीत सुनाने वाला हूँ
यहाँ बड़े इशारे पाकर वर्दी सोती रहती हैं
राजनीती की अपराधों से फिक्सिंग होती रहती हैं
डाकू नेता और पुलिस का गठबंधन हो जाता हैं
नागफनी काँटों का जंगल चन्दन वन हो जाता हैं
में दरबारों के दामन के दाग दिखने वाला हूँ
कलमकार हूँ कलमकार का धरम निभाने वाला हूँ
कलमकार हूँ इन्कलाब के गीत सुनाने वाला हूँ
 
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