कब तक

कब तक छुपाओगे चेहरे को
ढक कर यूँ नकाब से


यूँ तो है खुशबू हर फूल में
वो बात कहाँ जो गुलाब में


माना के हो बहुत ही हसीन
नहीं कम किसी आफताब से


यकीन करो ना लगेगी नज़र मेरी
देखूंगा तुम्हे इस हिसाब से


कलम :- हरमन बाजवा ( मुस्तापुरिया )

 
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