Saini Sa'aB
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कफन बाँध कर
कफन बाँध कर अपने सर से
निकले हैं फिर आँसू घर से
राहों में इस्पाती पहिये
गुज़र गए जब तब ऊपर से
अपने साथ चला है जीवन
शव को बाँधे हुए कमर से
लौटी हैं कुछ बंद फ़ाइलें
हम कब लौटे हैं दफ्तर से
नीला बदन हुआ सपनों का
किसके विष के तेज़ असर से
हमने अपने शीशे तोड़े
अपने हाथों के पत्थर से
उगता सूरज सोच रहा है
सुबह उठेगी कब बिस्तर से
कफन बाँध कर अपने सर से
निकले हैं फिर आँसू घर से
राहों में इस्पाती पहिये
गुज़र गए जब तब ऊपर से
अपने साथ चला है जीवन
शव को बाँधे हुए कमर से
लौटी हैं कुछ बंद फ़ाइलें
हम कब लौटे हैं दफ्तर से
नीला बदन हुआ सपनों का
किसके विष के तेज़ असर से
हमने अपने शीशे तोड़े
अपने हाथों के पत्थर से
उगता सूरज सोच रहा है
सुबह उठेगी कब बिस्तर से