एक थे सैकड़ों हो गए

Saini Sa'aB

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एक थे सैकड़ों हो गए

एक थे, सैकड़े हो गये
क़र्ज़ के आँकड़े हो गये

वक्त की मार ऐसी पड़ी
थे महल, झोंपड़े हो गये

रौनक़े-बज्म थे कल जो, अब
चौखटों में जड़े हो गये

क्या़ ग़ज़ब खुरदरे दौर में
लोग चिकने घड़े हो गये

जो थे पहलू में बैठे कभी
अब वो बच्चे बड़े हो गये

जिनकी नज़रें थी सहमी हुईं
उनके तेवर कड़े हो गये

तिफ़्ल दादों की उँगली झटक
अपने पैरों खड़े हो गये

 
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