एक अदद भूल

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
एक अदद भूल

सहमी-सी शाम एक
एक अदद भूल-
डाल गई
जाल एक
मन के प्रतिकूल!
सुरसा-सी फैल रही
सुधियों की बाँह
लील गए
मन को कुछ
रेशमी गुनाह,
झोंक नैतिकता की
आँखों में धूल!
तृप्ति एक
तन मन दो
छिड़ गया विवाद
उँगली पर
पनपे जब
रसना के स्वाद,
ताक पर
रख कर सब
नियति के उसूल!
वेद की
ऋचाओं ने
खींचे प्रतिबंध
कुशा और अंजलि भर
जल के अनुबंध
रेतों पर रोपे हैं -
रिश्तों के मूल!
डाल गई
जाल एक
मन के प्रतिकूल!
 
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