Saini Sa'aB
K00l$@!n!
उम्र की चादर की
बुक्कल मारकर
बैठी है लड़की
नीम उजाले में
इन्तज़ार का स्वेटर
बुनती जाती है
आंखें टिकी हैं
उम्र कुतरती सलाइयों पर
फिर भी फन्दे हैं कि
छूट छूट जाते हैं
उम्र
फूटे घड़े के पानी की तरह
बूंद बूंद कर रिसती रहती है
लड़की
अधूरे स्वेटर की पीड़ा
उम्र के हर मोड़ पर
चुपचाप सहती है ।
24 जून 2007
बुक्कल मारकर
बैठी है लड़की
नीम उजाले में
इन्तज़ार का स्वेटर
बुनती जाती है
आंखें टिकी हैं
उम्र कुतरती सलाइयों पर
फिर भी फन्दे हैं कि
छूट छूट जाते हैं
उम्र
फूटे घड़े के पानी की तरह
बूंद बूंद कर रिसती रहती है
लड़की
अधूरे स्वेटर की पीड़ा
उम्र के हर मोड़ पर
चुपचाप सहती है ।
24 जून 2007