इस शहर में

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
इस शहर में

पत्थरों के
इस शहर में मैं जब से आ गया हूँ
बहुत गहरी चोट मन पर और
तन पर खा गया हूँ।
अमराई
को न भूल पाया
न कोयल की ऋचाएँ,
हृदय से लिपटी हुई हैं
भोर की
शीतल हवाएँ।
बीता हुआ हर एक पल
याद में मैं पा गया हूँ।

शहर
लिपटा है धुएँ में
भीड़ में सब हैं अकेले,
स्वार्थ की है धूप गहरी
कपट
के हैं क्रूर मेले।
बैठकर सुनसान घर में
दर्द मैं सहला गया हूँ।
 
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