Saini Sa'aB
K00l$@!n!
इस मोड़ पर
वक्त हरदम
साथ था मेरे
कभी रूमाल बन कर
पोंछता आँसू
कभी तूफ़ान बन कर
टूटता मुझ पर
कभी वह भूख था
कभी उम्मीद का सूरज
कभी संगीत था
तनहाइयों का
कभी वह आख़िरी किश्ती
जो मुझको छोड़ जाती थी
किनारे पर अकेला
वो हमदम था
कि दुश्मन
या कि कोई अजनबी था
समझते – ना समझते
उम्र के इस मोड़ पर
आ गए दोनों. . .
वक्त हरदम
साथ था मेरे
कभी रूमाल बन कर
पोंछता आँसू
कभी तूफ़ान बन कर
टूटता मुझ पर
कभी वह भूख था
कभी उम्मीद का सूरज
कभी संगीत था
तनहाइयों का
कभी वह आख़िरी किश्ती
जो मुझको छोड़ जाती थी
किनारे पर अकेला
वो हमदम था
कि दुश्मन
या कि कोई अजनबी था
समझते – ना समझते
उम्र के इस मोड़ पर
आ गए दोनों. . .