Justpunjabi
Lets_rock
पत्थर का मेरी ओर तो आना जरूर था
मैं ही गुनहगारोँ में इक बेकसूर था
सचाई आग ठहरी तो लब जल के रह गए
हकगोई पर हमें भी कभी क्या ग़रूर था
शबनम पहन के निकले थे शोलोँ के काफिले
देखे पोशाक के नीचे ये किस को शऊर था
बैठा हुआ था कोई सरे-राह-आरज़ू
इक उम्र की थकन से बदन चूर-चूर था
ठहरा हुआ है एक ही मंजर निगाह में
इक आधा खुला दरीचा था इक सैलाबे-नूर था
बनकर जबान बोल रहा था बदन तमाम
समझे न हम तो अकल का अपना कसूर था
मैं ही गुनहगारोँ में इक बेकसूर था
सचाई आग ठहरी तो लब जल के रह गए
हकगोई पर हमें भी कभी क्या ग़रूर था
शबनम पहन के निकले थे शोलोँ के काफिले
देखे पोशाक के नीचे ये किस को शऊर था
बैठा हुआ था कोई सरे-राह-आरज़ू
इक उम्र की थकन से बदन चूर-चूर था
ठहरा हुआ है एक ही मंजर निगाह में
इक आधा खुला दरीचा था इक सैलाबे-नूर था
बनकर जबान बोल रहा था बदन तमाम
समझे न हम तो अकल का अपना कसूर था