आदमखोर हवाएँ

Saini Sa'aB

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आदमखोर हवाएँ

कौन सुनेगा बियाबान में
पीड़ा भरी व्यथाएँ।
यहाँ-वहाँ तक पसर गई है
आदमखोर हवाएँ।

बहीं गाँव की ओर सभी के
तन के वस्त्र हटाये
जिनकी लज्जा शेष बची वह
खड़ा हुआ मुँह बाये

खोजे नये शिकार बदन पर
खूनी दाँत गड़ाएँ।

निर्धन के घर खेत उजाड़े
रोटी को तरसाये
करे मजूरी महानगर में
दिन भर स्वेद बहाये

सदियों की यह पुरावृत्तियाँ
गढ़ती नई कथाएँ।

लाखों चेहरे लाखों मोहरे
लाखों-लाख मुखौटे
शेरों का अभिनय करते हैं
गीदड़ और बिलौटे

उधर भेड़ियों के प्रश्रय में
होती धर्मसभाएँ
 
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