आज से पहले

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
आज से पहले
एक पत्ता भी उड़ता न था
किसी आँधी के झोंके से
आज एक छोटे से हवा ने
कहीं से लाकर मुझे
दे दिया एक ख़याल
यूँ खोया रहा मेरा मन
जाने कैसे इतने दिनों बाद
खारे पानी के इस सैलाब में
उमड़ कर डूबता रहा
डूब कर उभरता रहा।
कितने उलझे हुए सवाल
और उनके उलझे हुए जवाबों को
कर लिया अपने नाम
मेरे सारे ख़यालों ने
दस्तख़त कर दिये
कुछ कोरे काग़ज़ पर
फिर मन उदास है
और हर ख़याल रो रहा
चीख चीख कर
मैं चुप बैठी देख रही हूँ
अपने आँखों से ये खेल
बेबस पूरी तरह
मेरे बस मे नहीं कुछ
इस ख़याल ने हरा दिया मुझे।
 
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