आज दिन

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
आज दिन
फिर ठंडा था।
सागर तट पर सजी सजाई
चमकी दमकी
नन्हीं-नन्हीं दूकानों में
धंधा कुछ मंदा था।
सैलानी जत्थों की कोई
भीड़ नहीं थी
मछुआरों को भी दिन से
उम्मीद नहीं थी
सर्द हवा के झोंके
पन्नों से उड़ते थे
नए-नए अनुबंधों छंदों
को बुनते थे
हल्की–हल्की बौछारों में
मन खोया था
शोर भरी इस नगरी में
सब कुछ सोया था
चलो कीमती इस दिन को
बटुए में रख लें
पढ़ा करेंगे फिर फुर्सत में
धीरे-धीरे. . .
 
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