आज कुछ माँगती हूँ प्रिय

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
आज कुछ माँगती हूँ प्रिय
आज कुछ माँगती हूँ प्रिय।
आज कुछ माँगती हूँ मैं
प्रिय क्या दे सकोगे तुम?
मौन का मौन में प्रत्युत्तर
अनछुए छुअन का अहसास
देर तक चुप्पी को बांध कर
खेलो अपने आसपास
क्या ऐसी सीमा में खुद को
प्रिय बांध सकोगे तुम
आज कुछ माँगती हूँ प्रिय।
तुम्हारे इक छोटे से दुख से
कभी जो मेरा मन भर आए
ढुलक पड़े आंखों से मोती
सीमा तोड़ कर बह जाए
तो ज़रा देर उंगली पर अपने
दे देना रुकने को जगह तुम
उसे थोड़ी देर का आश्रय
प्रिय क्या दे सकोगे तुम?
आज कुछ माँगती हूँ प्रिय।
कभी जब देर तक तुम्हारी
आंखों में मैं न रह पाऊँ
बोझिल से सपनों के भीड़
में धीरे से गुम हो जाऊँ
और किसी छोटे से स्वप्न
के पीछे जा कर छुप जाऊँ
ऐसे में बिन आहट के समय
को क्या लांघ सकोगे तुम
आज कुछ माँगती हूँ प्रिय।
 
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