Saini Sa'aB
K00l$@!n!
आए हम शहर
गाँव नेहों का भूल गए!
चेहरों पर एक नहीं
अनगिन हैं पर्तें
कितनी जो जीने की
ऐसी हैं शर्तें
जामनु की छाँव
नीम-बरगद को भूल गए!
कैसे तो दाँव यहाँ
रोज़ लोग चलते
औरों की कौन कहे
अपनों को छलते
कागा का काँव
.यहाँ आकर हम भूल गए!
कुछ ऐसी भाग-दौड़
भीतर तक टूटे
सपने जो लाए थे
संग-साथ छूटे
आए थे पाने कुछ,
खुद को ही भूल गए!
गाँव नेहों का भूल गए!
चेहरों पर एक नहीं
अनगिन हैं पर्तें
कितनी जो जीने की
ऐसी हैं शर्तें
जामनु की छाँव
नीम-बरगद को भूल गए!
कैसे तो दाँव यहाँ
रोज़ लोग चलते
औरों की कौन कहे
अपनों को छलते
कागा का काँव
.यहाँ आकर हम भूल गए!
कुछ ऐसी भाग-दौड़
भीतर तक टूटे
सपने जो लाए थे
संग-साथ छूटे
आए थे पाने कुछ,
खुद को ही भूल गए!