आइडियल बहू

बेटा ज्यो-ज्यो बड़ा हुआ माँ ने सपना देखन किया शुरू,
सोच रही क्या जतन लगाऊ और ले आऊ आइडियल बहू!

खुली आँखो से देख के सपना जोड़ -तोड़ लगा रही,
मोहल्ले की हर सुंदर लड़की मैं उसे अपनी बहू नज़र आ रही!

सास -बहू के देख सीरियल अपने को रिझा रही,
बड़ी बिंदी,लंबा टीका और घूँघट देख- देख मुस्का रही!

राह चलती हर लड़की को देख कुछ छण रुक जाती है,
नैन -नक्स को ध्यान से देखे फिर उसका पता लगा रही!

इतना भी कम ना था जो बेटे का बियो-डाटा बटवा दिया
उसकी तारीफ के बाँध के पुल इस्तेहर छपवा दिया

सोच रही कोई माँ जी कहती, छम-छम करती आएगी
सुबह सुबह जल्दी उठेगी और हरी भजन सुनाएगी

सुंदर चहेरा कजरारे नैन मंद-मंद मुस्काएगी
दिन भर रहे टिप-टॉप घर की शोभा बड़ाएगी

सर्व गुण सम्पन ,संस्कारी और सुंदर बहू लाएगी
पड़ोसिनो को उससे मिलवा खूब रोब जमाएगी

पति को परमेस्वर कहे और घर को सवर्ग बनाएगी
दिन भर सारे काम करे और फिर पैर दबाएगी

माँ के ऐसे सपनो से बेटे का मन घबरा रहा
कहाँ से लाए आईडीअल बहू, ये गम उसे सता रहा

एक दिन बेटा माँ से बोला,तू क्यो नही समझती है
आज कल आइडियल बहू सिर्फ़ सीरियल मैं ही दिखती है


डॉक्टर राजीव श्रीवास्तवा
 
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