अम्मा धरें रोज सगुनौटी

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
अम्मा धरें
रोज सगुनौटी
पूत नहीं बहुरे
शहरी व्याप गई उजरौटी
पूत नहीं बहुरे

धुँधलाए सनेस
आँखों में साँझ उतर आई
झूठे गौरि गनेस
उदास ओसारा अँगनाई
मारे गाँव जवार
सपूती कोख सहे तान
चन्नी बर्द दुवार
गिरस्ती के अब क्या माने
ममता हारी मान मनौती
पूत नहीं बहुरे

जाल फँसे छौने
जेबों में सपनों की पूँजी
तुतले एक खिलौना को
तरसें माँ बाबूजी
चुभता फर्ज
कभी बनकर जो आता मनिआडर
वक्त वसूले कर्ज
बना पटवारी गिरदावर
कितनी करे गुहार बुढ़ौती
पूत नहीं बहुरे
शहरी व्याप गई उजरौटी
पूत नहीं बहुरे
 
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