अनुपस्थिति मेरी

Saini Sa'aB

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अनुपस्थिति मेरी
जहां-जहां मैं रहा उपस्थित अंकित है
अनुपस्थिति मेरी।

क्रान्ति चली भी साथ हमारे
दोनों हाथ मशाल उठाए
मेरे कंधों पर वादक ने
परिवर्तन के बिगुल बजाए
सपनों में चलने की आदत
वंशानुगत रही तो पहले
अब लोगों की भौ पर बल है मुझे मिली जब
जागृति मेरी।


सिमट गया है सब कुछ ऐसे
टूटे तरु की छाया जैसे
भूल भुलैया लेकर आये
शुभ चिंतक हैं कैसे-कैसे
मिथक, पुराण, कथा बनती है
आगे एक प्रथा बनती है
क्रास उठाए टँगी घरों में ईसा जैसी
आकृति मेरी।


 
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