अकेला रह के भी गुलदान मे हँसता रहा बरसों

~¤Akash¤~

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उजालों ने दिया रोशन जमीरी का पता बरसों
बुझे भी तो चरागों से धुआं उठता रहा बरसों

वहीँ जिसने महोब्बत की अना को ज़िन्दगी बख्शी
वफ़ा की लाश कन्धों पर लिए फिरता रहा बरसो

किया था दिल से हमने मशविरा हर एक मरासिम पर
रहा हमसे जुदा दिल और हम रहे दिल से जुदा बरसों

बता ए दोस्त तू ही बता वो आग कैसी थी
के दिल भीगा हुआ काजग था और फिर भे जला बरसों

मेरे जैसी ही फितरत पाई थी उस फूल ने शायद
अकेला रह के भी गुलदान मे हँसता रहा बरसों
 
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