लेकिन कोई कब तक ख्वाबों में काटे ज़िन्दगी &#23

~¤Akash¤~

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आज फिर चाँद को देखते हुए गुजरी तमाम रात ना सोये ना जागे ये आँखे ना जाने किस तलाश
में सारी रात चाँद को तकती रही, खोयी रही सारी रात उस उजली सी कहकशां में आँखे,
ऐसा लगता था के चाँद के झरोखे से कोई चांदनी की पगडण्डी पे पैर रखता हुआ
आँखों की तरफ आ रहा था आसमान से,
सुबह उठे तो पास के पेड़ पे कुछ पंछी चहक रहे थे रोजाना की तरह,पर आज बोझिल
सी पलके चांदनी की तरह चमक रही थी और आँखों से ख्वाबों की मीठी मीठी महक आ रही थी
रात फिर तुम शायद चुपके से आँखों में आये थे और जाते हुए चांदनी के कुछ कतरे पलकों पे छोड़
गये,रात फिर तेरी यादों का एक एक मोती ख्वाबों में पिरो लिया मैंने, बस यादें हैं और कुछ भी नहीं अयान,
ये ज़िन्दगी है ये तो बहती रहती हैं बादलों के तरह और कभी बरस कर ज़हन की साखों पे आगे गुजर जाती है और फिर बूँद-बूँद करके रिसते रहते हैं यादों के कतरे, कभी आँखों में टपक पड़ते हैं ख्वाब बन कर और कभी दिल की जमीं को बहा ले जाते हैं दरिया बनकर,
लेकिन कोई कब तक ख्वाबों में काटे ज़िन्दगी सारी................अब तो ख्वाब आँखों में चुभने लगे हैं अयान.....
 
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