कभी तोड़ पाए न जिसको संसृति की निर्मम रीतें , बांध कोई ऐसा बंधन दो तो मैं चैन से सो जाऊं छुपा सकूँ मैं ओट में जिसकी पावन प्रेम तुम्हारा मेरा , प्रिय मुझको वह अवगुंठन दो तो मैं चैन से सो जाऊं