आहिस्ता गुजर के देख कभी पलकों सा संवर के देख कभी पढता हैं सदा ही चेहरे को इस दिल में उतर के देख कभी वो साथ तेरे ही हैं अब भी पल भर तो ठहर के देख कभी हर ग़ज़ल मेरी हैं आइना लफ़्ज़ों में उतर के देख कभी मंजिल तो बदलता हैं अक्सर राहों पे भी...