क्यों धुआँ उठ रहा है गाह-ब-गाह सिर्फ़ मेरे ह&#

~¤Akash¤~

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आमद-ए गुल है मेरे आने से
और फसले ख़िज़ाँ है जाने से

मैं चला जाऊँगा यहाँ से अगर
नहीं आऊँगा फिर बुलाने से

तुम तरस जाओगे हँसी के लिए
बाज़ आओ मुझे रुलाने से

उस से कह दो कि वक़्त है अब भी
बाज़ आ जाए ज़ुल्म ढाने से

हम भी मुँह मे ज़बान रखते हैँ
हमको परहेज़ है सुनाने से

या तो हम बोलते नहीं हैं कुछ
बोलते हैं तो फिर ठेकाने से

एक पल में हुबाब टूट गया
क्या मिला उसको सर उठाने से

रूह है क़ैद जिस्म-ए ख़ाकी में
कब निकल जाए किस बहाने से

हँस के बिजली गिरा रहे थे तुम
है जलन मेरे मुस्कुराने से

क्यों धुआँ उठ रहा है गाह-ब-गाह
सिर्फ़ मेरे ही आशियाने से
 

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
Re: क्यों धुआँ उठ रहा है गाह-ब-गाह सिर्फ़ मेरे &#236

:wah Bahut Khoob :wah
 
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