ab mujhe unse koi shikayat na rahi

~¤Akash¤~

Prime VIP
ab mujhe unse koi shikayat na rahi
iski bhi unko mujhse shikayat hai yaaron

हम रातों को उठ-उठ के जिनके लिए रोते हैं
वो गैर की बाहों में आराम से सोते हैं

हर शम्आ बुझी रफ्ता रफ्ता हर ख्वाब लुटा धीरे - धीरे
शीशा न सही पत्थर भी न था दिल टूट गया धीरे - धीरे
 
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