वोह हंसिनी आती मुस्काती!!

वो हंसिनी आती मुस्काती !

पैरो में बांधे मधुर मानिक !
घुंघरू से अच्छे स्वर उनके !
सबके हिय को हर ले जाती !
वो हंसिनी आती मुस्काती !!

चपला से चंचल लाल परि !
रति के यौवन सी है निखरी !
अधरों पे रक्खे मधुशाला !
मन को व्याकुल सी कर जाती !
वो हंसिनी आती मुस्काती !!

मेरा मन भी होता है मुदित !
नहीं रस रंजित अपितु पुलकित !
नैनो के तीव्र कटाक्ष से !
वोह श्यामा को भी लज्जाती !
वो हंसिनी आती मुस्काती !!

हो गा शायद ये मधुर स्वपन !
पर तुम न जागना हे मेरे नयन!
बस थोडी प्रतीक्षा और करें !
वोह धवला अभी होगी आती!

श्वेत वक्ष और धवल नितम्ब !
जैसे हो कायीत अविलम्ब !
क्या कहूं उर्वशी या मेनका !
या फिर रति का उग्र दंभ !
अंको में भर के एक बार !
त्यागूँ जीवन को अविलम्ब !

वर्षा बूंदों से भीगे अधर !
मधु मदिरा मत्त हैं दोनों नयन !
अपने प्रेम के पुष्पों को !
मेरी शैया पे बिखराती !
वोह हंसिनी आती मुस्काती!!
 
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