सवाल हैं जवाबदारी चाहिए.................

satvir62

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सवाल हैं जवाबदारी चाहिए.................

एक चीख है जो अक्सर मुझे जन्जोह्र देती है रातों में पिछले साल से
बहुत करवतें बदलता हूँ पूरी रात, फिर ,
बेफिक्र हो जाता हूँ की सुकर है , वोह में नहीं कोई और था
क्या धड़कनें या नवस ही काफी हैं इस जिस्म को एहसास दिलाने की लिए , की तू जिंदा है, वोह कोई और था
या कुच्छ और सवालों के जवाब चाहियें,तुझे, अपनी रूह से तारूफ करने के लिए......
कब तक में मखियों की भिन्बिन्यत ,
किसी लावारिस लाश पर सुन कर उन्सूनी कर दूंगा
कब तक में रेट और बदरपुर में फर्क नहीं कर प् ऊँगा,
देख कर भी ये सुर्ख लहू इंसानियत का
कब तक इस मंडी में अपनी तेज़ दौर की होहर में लगा रहूँगा,
, जिन्दा कंकालों पे चाहता हुआ , बहुत बेफिकेरी से
कबतक अपनी रूह को एक बंद कमरे में दफ़न कर के,
जिस्म के नुमैशों में शरीक हूँगा, बिना नागा
कब तक स्याशी डाव पेच खेल कर अपनी लाचारी खरीद लूँगा हर बार,
इस 24 x 7 बाज़ार में, बेच अपनी इन्सान्यत को, किस्तों में

कब तक अपने से नज़रें चुराता रहूँगा में,
हर अक्स को देख कर दिन रत...पशेमान हो कर
आखिर कब तक........
 
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