अब निगाहों में न ख्वाहिश है, न हसरत, न मलाल अब यहाँ लब पे कहाँ हर्फ़-ऐ सवाल आता है ! अब हमें किसकी मोहब्बत का यकीं आएगा उनकी बेज़ार निगाहों का ख़याल आता है !