~¤Akash¤~
Prime VIP
पहुंचा हूँ कहाँ, निकला था कहाँ के लिए,
खुद को मिटा डाला, तेरी दास्ताँ के लिए.....
हमसफ़र मेरा मंजिल पर पहुँच चुका,
मैं तरसा किया कदमो के निशाँ के लिए....
बेकार जमीं के हर हिस्से में ढूँढा किया,
बना था वो शख्स तो आसमाँ के लिए....
उस सेहरा में काँटों से घर सजाते है,
क्या करोगे ले जाकर फूल वहाँ के लिए....
तुम उसे पूरी जान से चाहो न विशेष,
रहने दो थोड़ा बाकि भी जहाँ के लिए..
खुद को मिटा डाला, तेरी दास्ताँ के लिए.....
हमसफ़र मेरा मंजिल पर पहुँच चुका,
मैं तरसा किया कदमो के निशाँ के लिए....
बेकार जमीं के हर हिस्से में ढूँढा किया,
बना था वो शख्स तो आसमाँ के लिए....
उस सेहरा में काँटों से घर सजाते है,
क्या करोगे ले जाकर फूल वहाँ के लिए....
तुम उसे पूरी जान से चाहो न विशेष,
रहने दो थोड़ा बाकि भी जहाँ के लिए..