पर अपने बुजुर्गों की जबाँ पर नहीं लिखता......

~¤Akash¤~

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मैं लिखता हूँ खताओं पे सजा पर नहीं लिखता
मेरी उंगली हैं चरागों पे, मैं हवा पर नहीं लिखता

मैं महक लिखा करता हूँ मिटटी के घरों की
तेरे शहर के शीशों के मकाँ पर नहीं लिखता

मैं लिखता हूँ गुरबतों पे फाकाकशी पे रोज
किसी महजबीं के हुस्न-ओ-अदा पर नहीं लिखता

मशहूर है दुनिया में यूँ तो आजिजी मेरी
पर सच को कभी सर मैं झुकाकर नहीं लिखता

मेरी आदत हैं मैं लिखता हूँ अपने निगहबान पर
रहजन पे मैं सब कुछ भी लुटा कर नहीं लिखता

लिखता हूँ मैं इस शहर के हर एक खुदा पर
पर यारों मैं सचमुच के खुदा पर नहीं लिखता

मैं दिल में किया करता हूँ बस जिक्रे खुदाई
मंदिर पे या मस्जिद की अजां पर नहीं लिखता

मैं लिखा करता हूँ हर रोज मुन्सिफ की कलम पर
कातिल के कभी झूठे बयां पर नहीं लिखता

लिख लेता हूँ मैं ऐब हुनर अपने ही अयान
पर अपने बुजुर्गों की जबाँ पर नहीं लिखता......
 
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