सब बलाएँ रोज मेरी अपने सर लेती रही माँ ही थी जो सह के सब कुछ भी दुआ देती रही उसके दम पर अ: अंधेरों आज भी रोशन हूँ मैं मेरी बुझती लौ को माँ हर दिन हवा देती रही.