~¤Akash¤~
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हैं दम क्या बिजलियों में फिर दीवाना पूछता हैं
उठा के सर, फलक से आशियाना पूछता हैं
इन्तहा हैं बस बुलंदी की "अयान " अब
किधर हैं तीर, आ के खुद निशाना पूछता हैं
दबाएँ जिस किसी ने पैर अपनी माँ के हर दिन
उसी के नाम को यारों जमाना पूछता हैं
किया है जिक्र कोई क्या मेरा अब के शंमा ने
जलकर के ये हर दिन ही दीवाना पूछता हैं
उसका नम्र-लहजा जब से हैं दुश्मन ने देखा
कैसे हो मियां......कर के बहाना पूछता हैं....
उठा के सर, फलक से आशियाना पूछता हैं
इन्तहा हैं बस बुलंदी की "अयान " अब
किधर हैं तीर, आ के खुद निशाना पूछता हैं
दबाएँ जिस किसी ने पैर अपनी माँ के हर दिन
उसी के नाम को यारों जमाना पूछता हैं
किया है जिक्र कोई क्या मेरा अब के शंमा ने
जलकर के ये हर दिन ही दीवाना पूछता हैं
उसका नम्र-लहजा जब से हैं दुश्मन ने देखा
कैसे हो मियां......कर के बहाना पूछता हैं....