"मेरठ" में रहता था एक दीवाना भी...

~¤Akash¤~

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रोज बिखरना रोज संवर हैं जाना भी
जिंदगी क्या हैं खोना भी हैं पाना भी

अक्सर याद आता हैं अब भी जाने क्यूँ
रूठना उसका रोज ही उसे मनाना भी

फिर आएगा बादल ले के बरसातें
वक़्त का क्या हैं आना भी हैं जाना भी

में बाशिन्दा हूँ सूरज की बस्ती का
सहर हुए तो आना शाम को जाना भी

रोशन था एक जुगनू दूर अंधेरों में
"मेरठ" में रहता था एक दीवाना भी...
 
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