~¤Akash¤~
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जाति-धर्म और मजहब की दीवारें क्या
यारब तेरे नाम पे ये बटवारे क्या
आ जाये मौला जो तू हर एक दिल में
फिर मंदिर क्या हैं मस्जिद क्या गुरद्वारे क्या
फाको से ही ईद मनायी हो जिसने
उसके आगे पिस्ते बादाम छुआरे क्या
जब चार दिनों में ही सब कुछ खो जाता है
फिर तेरे, मेरे, उसके, और हमारे क्या
इसी लिए उसे इश्क कबूल नहीं मेरा
जब जख्म नहीं दिल में तुम इश्क के मारे क्या....
यारब तेरे नाम पे ये बटवारे क्या
आ जाये मौला जो तू हर एक दिल में
फिर मंदिर क्या हैं मस्जिद क्या गुरद्वारे क्या
फाको से ही ईद मनायी हो जिसने
उसके आगे पिस्ते बादाम छुआरे क्या
जब चार दिनों में ही सब कुछ खो जाता है
फिर तेरे, मेरे, उसके, और हमारे क्या
इसी लिए उसे इश्क कबूल नहीं मेरा
जब जख्म नहीं दिल में तुम इश्क के मारे क्या....