अब भूल गये हैं वो अपनी अदा अयान क्या पत्थरों में आइना-खाना नहीं रहा.......... तन्हाई का जशन मनाता रहता हूँ खुद को अपने शेर सुनाता रहता हूँ जन्नत की कुंजी हैं मेरी मुट्ठी में अपनी माँ के पाँव दबाता रहता हूँ..........