हैं भीड़ बहुत लेकिन, इन्सान हैं कम.......

~¤Akash¤~

Prime VIP
डर डर के जिए और रहा एक ही गम
लम्हा लम्हा हुई है ये ज़िन्दगी कम

ऊपर से ही बस यहाँ हँसते हैं सभी
बोझल हैं साँसे सबकी और आँख हैं नम

खोये है सब के सब कुछ ऐसे यहाँ
अपने लिए भी जैसे बस वक़्त है कम

होगा भी क्या यहाँ ये कर के बयां
किस किस ने दिए हैं इस दिल को जख्म

गैरों पे तो रखेंगे इल्जाम जब ही
कम हो जायेंगे यारों जब अपनों के सितम

मर कर के गुजरेगी ये रात तो अब
बाकी हैं शब् और उसपे मय है ख़तम

मिलता ही नहीं कोई अब हम सा यहाँ
हैं भीड़ बहुत लेकिन, इन्सान हैं कम.......
 
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